To save millions of children from obesity India needs strong warning labels on packed food: experts-
Govt needs to wake up to alarming rise in Covid-induced childhood obesity - Dr Naveen Thacker
New Delhi / National: A webinar was organized on ‘Challenge of Child Obesity and Packaged Food during Covid pandemic in India. Dr. Naveen Thacker, President Elect, International Pediatrics Association (IAP) , Dr Arun Gupta, pediatrician and ex-member of the Prime Minister’s Nutrition Council and many other prominent Doctors and health experts were participated in this webinar . With more than 14.4 million obese kids, India has the second highest number of children with childhood obesity in the world. This number is likely to swell to 17 million by 2025, if the government does not intervene urgently to fix scientific limits and labelling for salt, sugar, saturated fats and other harmful ingredients in packaged and ultra-processed food and beverages, public health experts and doctors have warned.
Participating in a webinar on ‘Challenge of Child Obesity and Packaged Food during Covid pandemic in India,’ they also demanded front of pack labels (FOPL) on these products to ensure that parents make an informed choice before giving them to their kids to eat.
"Usually, an increased consumption of unhealthy or processed food coupled with physical inactivity leads to this preventable condition. It is fast emerging as the most serious public health challenges," Dr. Naveen Thacker, President Elect, International Pediatrics Association (IAP) said, as he enlisted various physical and mental health issues such as poor academics, mood swings and lack of alertness, less energy, depression and sleep disturbances due to rampant consumption of junk food, energy drinks, beverages, caffeine and ultra-processed food.
He explained that "along with tobacco, alcohol and physical activity, an unhealthy diet is strongly linked with NCDs, which are a major challenge in India.”
Recently, the World Health Assembly (WHA) globally agreed framework for evidence-based cut-offs for anti-nutrients like sugar, salt and saturated fat present in packaged food. “In India, there are many guidelines related to consumption of foods and drinks for children, but there is a need for policy recommendations and implementation,” said Dr Thacker even as he asserted on making right to have healthy food a public movement.
In Corona times, the obesity has increased among children due to lifestyle changes; their physical activities are restricted to bare minimum due to lockdown restrictions and closure of schools. It’s time that the government introduces front-of-package labelling (FOPL). Lip service will not help, he asserted.
World Health Organisation (WHO) has identified FOPL as "one of the policy tools that can support healthy diets." So far 11 countries across the world have enacted laws making FOPL mandatory. India is still holding consultations with various stakeholders to find a viable model, he added.
Dr Arun Gupta, pediatrician and ex-member of the Prime Minister’s Nutrition Council too made strong case for tightening the noose around the food industry. “There are various studies that shows that 10 per cent increase in the consumption of Ultra processed food increases the chances of obesity, diabetes, cardiovascular diseases and certain types of cancer by approximately 10%.
"Children are particularly at risk. It is not good to blame people always that they are not eating right food. The government and food industry should be held accountable to safeguard children and enable a nutritious food system for them. For this, strong legislation backed by the will to implement is needed," he asserted.
"We need to set evidence-based limits on the high concentration of salt, sugar and fats in packaged foods so families have clear guidance when buying these products," he added.
Senior journalist Mr. Vijay Jha opined that there was a need to curb marketing strategies of the food industry while the government should come out with strong legislations and create awareness among people about the health hazardous of the junk food.
As per the Burden of Packaged Food on School children, based on Centre for Science and Environment (CSE) survey Know your Diet Study (2017), 53% children consumed salted packaged food such as chips and instant noodles at an average of over twice a week.
About 56% children consumed sweet, packaged food such as chocolates and ice creams at an average of over twice a week. 49% children consumed sugar-sweetened packaged beverages at an average of over twice a week sedentary lifestyle, unhealthy food choices, including increasing consumption of pre-packaged food among adults and children has increased the rate of obesity and NCDs.
Global researches have proved that the packaged food, without sufficient and adequate warning labels has been dangerous and tends to increase the consumption of salt, sugar and saturated fat.
‘‘कोराना महामारी के दौरान बच्चों का मोटापा और पैकेज्ड फूड‘‘ विषय पर हुआ वेबिनार का आयोजन
पैक्ड फूड पर चेतावनी बचा सकती है लाखों बच्चों को जीवन भर की बीमारियों सेः विशेषज्ञ
भारत तेजी से बन रहा बच्चों के मोटापे की वैश्विक राजधानी, कोरोना के बाद खतरा और बढ़ा
नई दिल्ली/ नेशनल: कोविड 19 के तीसरी लहर मे विषेशज्ञों द्वारा बच्चो पर खतरे की ज्यादा आशका जताई गई है। कोराना के दुसरी लहर मे भी मोटापा से ग्रसित बच्चे कोराना से ज्यादा प्रभावित हुए। इसी की गंभिरता को देखते हुए ‘‘कोराना महामारी के दौरान बच्चों का मोटापा और पैकेज्ड फूड‘‘ विषय पर एक वेबिनार का आयोजन हुआ। वेबिनार में इंटरनेशनल पैडिएट्रिक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट एलेक्ट (अध्यक्ष पद के अगले कार्यकाल के लिए निर्वाचित) और मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. नवीन ठक्कर एवं मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ और प्राइम मिनिस्टर न्यूट्रीशन काउंसिल के पूर्व सदस्य डॉ. अरुण गुप्ता सहित कई विषेशज्ञो ने हिस्सा लिया।
वेबिनार मे हिस्सा लेते हुए स्वास्थ्य विशेषज्ञों और डॉक्टरों ने चेताया कि अगर पैक्ड फूड यानी खाने-पीने की पैकेटबंद चीजों में नमक, शुगर और फैट की मात्रा सीमित कर पैकेट पर उनकी मात्रा की चेतावनी की व्यवस्था नहीं की गई तो आने वाले समय में बड़ी संख्या में बच्चों को उम्र भर परेशान करने वाली बीमारियों का शिकार होना पड़ेगा।
कोराना काल में घरों से बाहर नहीं निकलने की मजबूरी बड़ों के साथ-साथ बच्चों के स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर डाल रही है। उनके खानपान में जंक फूड और पैकेज्ड फूड की बढ़ती मात्रा उन्हें मोटापे की ओर धकेल रही है। बच्चों का बढ़ता मोटापा भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। भारत दुनिया का दूसरा ऐसा देश बन गया है जो बच्चों के मोटापे से ग्रसित है। भारत के 1.44 करोड़ बच्चे मोटापे के शिकार हैं जिनके वर्ष 2025 तक 1.70 करोड़ हो जाने का अनुमान है।
इंटरनेशनल पैडिएट्रिक एसोसिएशन के प्रेसिडेंट एलेक्ट (अध्यक्ष पद के अगले कार्यकाल के लिए निर्वाचित) और मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. नवीन ठक्कर ने बच्चों के स्वास्थय पर चिंता जताते हुए कहा, "भारत मोटापे और डायबिटीज का ग्लोबल हब बनता जा रहा है जो निश्चित रूप से गंभीर चिंता का विषय है। खासकर बच्चों में मोटापे की समस्या बढ़ती जा रही है।" यह बात उन्होंने "कोराना महामारी के दौरान बच्चों का मोटापा और पैकेज्ड फूड" विषय पर आयोजित वेबिनार में कही।
उन्होंने कहा, "कोरोना काल में यह समस्या और भी बढ़ती जा रही है। समय आ गया है कि सरकार को पैक्ड फूड पर फ्रंट ऑफ पैक लेबलिंग यानी पैकेट के ऊपर की तरफ चेतावनी की व्यवस्था जल्द से जल्द शुरू कर देनी चाहिए।"
मशहूर बाल रोग विशेषज्ञ और प्राइम मिनिस्टर न्यूट्रीशन काउंसिल के पूर्व सदस्य डॉ. अरुण गुप्ता ने वेबिनार में कहा, " विभिन्न अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड के इस्तेमाल में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी से मोटापा, डायबिटीज, हृदय संबंधी बीमारी और कुछ तरह के कैंसर के होने की संभावना 10 प्रतिशत तक बढ़ जाती है। इसलिए बहुत जरूरी है कि नमक, चीनी या वसा की अधिकता वाले ऐसे सामान पर पैकेट के ऊपर ही तरफ ही स्पष्ट चेतावनी होनी चाहिए।"
वरिष्ठ पत्रकार विजय झा ने कहा कि खाने-पीने की पैकेटबंद चीजों पर ना सिर्फ स्पष्ट चेतावनी प्रकाशित होनी चाहिए, बल्कि इसे इस तरह से प्रकाशित किया जाए कि लोगों को आसानी से समझ में आ सके। वैश्विक शोधों ने साबित कर दिया है कि अपर्याप्त और बिना चेतावनी वाले लेबल पैकेज्ड फूड खतरनाक हैं और नमक, शुगर और फैट की मात्रा शरीर में बढ़ाते हैं।
गैर संक्रामक बीमारियां (एनसीडी) पूरी दुनिया के लिए प्रमुख चिंता का कारण बनती जा रही हैं। एनसीडी में मोटापा, डायबिटीज और हृदय संबंधी बीमारी और कुछ कैंसर आते हैं। हर साल विश्व में 4 करोड़ लोगों की मौत एनसीडी से होती है जो विश्व की कुल मौतों का 70 फीसदी है।
हाल ही में वर्ल्ड हेल्थ असेंबली (डब्ल्यूएचए) ग्लोबल स्तर पर इस तरह का फ्रेमवर्क बनाने पर सहमत हुआ है जिसमें पैकेज्ड फूड में एंटी न्यूट्रिएंट्स जैसे शुगर, नमक और फैट की मात्रा की सीमा निर्धारित की जाए।
डॉ. नवीन ठक्कर ने सीएसई (सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट) के एक सर्वे का हवाला देते कहा, "करीब 93 फीसदी बच्चे हफ्ते में एक बार पैकेज्ड फूड जरूर खाते हैं। जबकि 68 फीसदी बच्चे पैकेज्ड एसएसबी (शुगर-स्वीटेंड बेवरेजेज) का सेवन करते हैं तथा 25 फीसदी बच्चे हफ्ते में एक बार पिज्जा, बर्गर जैसे अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड का इस्तेमाल करते हैं।"
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